Monday, December 19, 2016

भूला नहीं हूँ (पापा की पाती )

भूला नहीं हूँ

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उद्विग्न हूँ, लाचार हूँ ।
क्या कहूँ,
धरा पे खड़ा,
मगर
बेकार हूँ ।
सुबह का वक़्त ,
जाने कितनी रेलगाड़ियां
पटरी पर गुजर गयीं ,
बरबस ही,
बहुत सी यादें,
दिलो दिमाग में उभर गयीं ।
भूला नहीं हूँ----


अध्यापिका की भांति,
तेरा....दीवारों पे लिखना,
घंटो,.....अकेले,
लक्कड़ की बनी,
अलमारी पर,
खयालों को,
चाक से उकेरना ।
भूला नहीं हूँ......

कहाँ है वो लम्हें ,
एक छोटी छड़ी,
फिर तेरा
ख्याली बच्चों को डाटना ।
अक्सर
आफिस जाती मम्मी से,
उसकी साड़ी का माँगना,
स्कूल से आकर,
फिर उसे घंटो...
बदन पर लपेटना ।
लंबी टांगो वाली
अपनी बार्बी से खेलना
भूला नहीं हूँ......

आज
"फ्रूट खत्म हो गया मम्मी"
अक्सर ! मां को दफ्तर
फोन करना ।
मम्मी सेब ले आना,
अमरुद और केला भी ।
भूला नहीं हूँ ........

शायद ,
मैं खुद सफर पे हूँ,
क्या कहूँ.. अधर में हूँ,
बूढ़ा गया हूँ,
बोरा गया हूँ ।
सोचा था,
कुछ नहीं बताऊंगा,
मगर दर्द इतना है,
सह नहीं पाऊंगा ।
वो फीका जश्न
और
तेरी आँखों में
अन सुलझे प्रश्न
भूला नहीं हूँ.....

लौट आओ,
अन-जन्मे सवालों से,
उन ज्वलित ख्यालों से,
लौट आओ---बेटा--लौट आओ ।

----हर्ष महाजन

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