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ज़ख्म दर ज़ख्म अपने अहसास इन शेरों में प्रवेश करता हूँ
बस दिल के कुछ टुकड़े हैं जो रोज़ किश्तों में पेश करता हूँ ।
_______________________हर्ष महाजन ।
ज़ख्म दर ज़ख्म अपने अहसास इन शेरों में प्रवेश करता हूँ
बस दिल के कुछ टुकड़े हैं जो रोज़ किश्तों में पेश करता हूँ ।
_______________________हर्ष महाजन ।
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