वो कहते हैं हम कब किसी से हारे हैं
दहशत गर्द तो हैं पर रेत की दीवारें हैं |
वो समझ न पाए क्या है उल्फत यारो
उन्होंने अहसास बस इधर-उधर सवारे हैं|
उनका ही घर है और उनका ही आँगन है
हमें कुछ इमदाद मिली लगा इनके सहारे हैं |
वफाओं पर भी जब धुंआ कुछ उठने लगा
देखने वालों को भी लगा किसी के इशारे हैं |
दहशत गर्द तो हैं पर रेत की दीवारें हैं |
वो समझ न पाए क्या है उल्फत यारो
उन्होंने अहसास बस इधर-उधर सवारे हैं|
उनका ही घर है और उनका ही आँगन है
हमें कुछ इमदाद मिली लगा इनके सहारे हैं |
वफाओं पर भी जब धुंआ कुछ उठने लगा
देखने वालों को भी लगा किसी के इशारे हैं |
हमने ग़ज़ल छेड़ी के बस हमें दाद मिले
उनके शब्दों में 'हर्ष' अभी तक अंगारे हैं |
उनके शब्दों में 'हर्ष' अभी तक अंगारे हैं |
_____________हर्ष महाजन
बहुत सुन्दर गज़ल है सर....दाद कबूल करें.
ReplyDeleteShukriyaa vidya ji
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