Sunday, October 30, 2011

Ghazal

वो कहते हैं हम कब किसी से हारे हैं
दहशत गर्द तो हैं पर रेत की दीवारें हैं |

वो समझ न पाए क्या है उल्फत यारो
उन्होंने अहसास बस इधर-उधर सवारे हैं|

उनका ही घर है और उनका ही आँगन है
हमें कुछ इमदाद मिली लगा इनके सहारे हैं |

वफाओं पर भी जब धुंआ कुछ उठने लगा
देखने वालों को भी लगा किसी के इशारे हैं |  

  
हमने ग़ज़ल छेड़ी के बस हमें दाद मिले
उनके शब्दों में 'हर्ष' अभी तक अंगारे हैं |

_____________हर्ष महाजन

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर गज़ल है सर....दाद कबूल करें.

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