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सदियों से बिछुड़ी रूहें हम, जाने आज ये क्यूँ उदास हैं,
तन्हा सी ढलती उम्र में.......मिलने की अब क्यूँ आस है ।
सागर सा रिश्ता था कभी, नदिया सा फिर क्यूँ बंट गया,
कोई ज़ख्म भी था मिला नहीं......क्यूँ दर्द का अहसास है ।
मेरा हमसफ़र अब संग मेरे, जाने फिर भी क्यूँ परेशान हूँ ,
शायद है टुकड़ा दिल का इक, कोई अब भी उसके पास है ।
शायद है टुकड़ा दिल का इक, कोई अब भी उसके पास है ।
----------------------------------हर्ष महाजन
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