...
ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सजाओं पे किया करता हूँ |
गम के इस पार जो हस्ती बनायी थी कभी,
दर्द-ए-इज़हार खताओं पे किया करता हूँ |
आदत-ए-इश्क में ख़ाक-ए-जिगर देख लिया,
बे-जुबां शायरी अदाओं पे किया करता हूँ |
उसके इंतज़ार में अब इतनी सजा पायी है,
दिल्लगी आजकल हवाओं पे किया करता हूँ |
मेरी तन्हायी का दिल में खलल इतना हुआ,
अब तो हर ज़िक्र बे-वफाओं पे किया करता हूँ |
___________हर्ष महाजन
ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सजाओं पे किया करता हूँ |
गम के इस पार जो हस्ती बनायी थी कभी,
दर्द-ए-इज़हार खताओं पे किया करता हूँ |
आदत-ए-इश्क में ख़ाक-ए-जिगर देख लिया,
बे-जुबां शायरी अदाओं पे किया करता हूँ |
उसके इंतज़ार में अब इतनी सजा पायी है,
दिल्लगी आजकल हवाओं पे किया करता हूँ |
मेरी तन्हायी का दिल में खलल इतना हुआ,
अब तो हर ज़िक्र बे-वफाओं पे किया करता हूँ |
___________हर्ष महाजन
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