Tuesday, July 29, 2014

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ

...

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सजाओं पे किया करता हूँ |

गम के इस पार जो हस्ती बनायी थी कभी,
दर्द-ए-इज़हार खताओं पे किया करता हूँ |

आदत-ए-इश्क में ख़ाक-ए-जिगर देख लिया,
बे-जुबां शायरी अदाओं पे किया करता हूँ |

उसके इंतज़ार में अब इतनी सजा पायी है,
दिल्लगी आजकल हवाओं पे किया करता हूँ |

मेरी तन्हायी का दिल में खलल इतना हुआ,
अब तो हर ज़िक्र बे-वफाओं पे किया करता हूँ |

___________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment