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इखलास-ए-इश्क में क्या करें, आओ मिल के दुनिया ही छोड़ चलें,
न हो पूरा फ़र्ज़ गर उम्मीद का, तो ख्याल-ए-दुनिया ही मोड़ चलें |
यूँ तो हर तरफ बे-रुखी सी है.............धोखा फरेब खामोशी भी है,
क्यूँ न बे-जुबां इन बुतों से हम, खुशी-गम का रिश्ता ही तोड़ चलें |
________________________हर्ष महाजन
इखलास-ए-इश्क में क्या करें, आओ मिल के दुनिया ही छोड़ चलें,
न हो पूरा फ़र्ज़ गर उम्मीद का, तो ख्याल-ए-दुनिया ही मोड़ चलें |
यूँ तो हर तरफ बे-रुखी सी है.............धोखा फरेब खामोशी भी है,
क्यूँ न बे-जुबां इन बुतों से हम, खुशी-गम का रिश्ता ही तोड़ चलें |
________________________हर्ष महाजन
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