संसद की बुनियाद आज इस तरह हिलने लगीं
जिस तरह गिरगिट यहाँ अपना रंग बदलने लगीं |
दिख रहा है वो धुंआ अब तक कहीं उठा नहीं
नहीं दिखेगी आग वो जिस तरह जलने लगी |
हर गली हर मोड पर हर सड़क हर गाँव में
धधक उठी मशालें वो जो खुद-ब-खुद चलने लगीं |
ये संविधान हमारा है क्यूँ संसद ने नकारा है
अन्ना के आन्दोलन में सरकार क्यूँ भिड़ने लगी |
इतना भ्रष्टाचार हुआ है संसद का अकार हुआ है
लोकपाल के नाम पर संसद क्यूँ डरने लगी |
हर्ष महाजन
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