भरे काँटों में खिलते फूलों को भी तोड़ना सीखा,
है भैया का ये रिश्ता बहिनों ने तो जोड़ना सीखा |
है भैया का ये रिश्ता बहिनों ने तो जोड़ना सीखा |
हिफाज़त ज़िन्दगी भर की लिया करते थे कसमें वो,
मगर कलयुग में भैया ने ये रिश्ता तोडना सीखा |
मुहब्बत से वो ज़ख्मों पर जो मरहम वो लगाती थी,
मगर नोटों से भैया ने इसे अब मोड़ना सीखा |
कभी माँ की मुहब्बत बहिन की राखी बताती थी,
न जाने क्या हुआ भैया ने रिश्ते छोड़ना सीखा |
मलामत सह के भी रिश्तों को बांधे रेशमी डोरी,
ज़हर पीकर भी रिश्तों में शहद को घोलना सीखा |
हर्ष महाजन
बहरे हज़ज़ मुसमन सालिम
1222-1222-1222-1222
मगर कलयुग में भैया ने ये रिश्ता तोडना सीखा |
मुहब्बत से वो ज़ख्मों पर जो मरहम वो लगाती थी,
मगर नोटों से भैया ने इसे अब मोड़ना सीखा |
कभी माँ की मुहब्बत बहिन की राखी बताती थी,
न जाने क्या हुआ भैया ने रिश्ते छोड़ना सीखा |
मलामत सह के भी रिश्तों को बांधे रेशमी डोरी,
ज़हर पीकर भी रिश्तों में शहद को घोलना सीखा |
हर्ष महाजन
बहरे हज़ज़ मुसमन सालिम
1222-1222-1222-1222
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