एक मुक्तक
...
...
लोग जाने शहर में....किस तरह जी रहे हैं,
इन हवाओं में शामिल ज़हर तक पी रहे हैं |
गाँव जब से उठे हैं....शहर की चाल लेकर,
तब से चादर ग़मों की....शहरिये सी रहे हैं |
इन हवाओं में शामिल ज़हर तक पी रहे हैं |
गाँव जब से उठे हैं....शहर की चाल लेकर,
तब से चादर ग़मों की....शहरिये सी रहे हैं |
हर्ष महाजन 'हर्ष'
No comments:
Post a Comment