दोस्तो आपकी अदालत में एक नज़्म पेशे खिदमत है उम्मीद है इसे अपने प्यार से ज़रूर नवाजेंगे ।अगर अच्छी लगे तो दो शब्द ज़रूर कहियेगा ।
------------------अटूट रिश्ता (नज़्म)
वो दोस्ती का जज़्बा कभी दिखा न सका,
दुश्मन तो था मगर दुश्मनी निभा न सका ।
कुछ एक फसाने हकीकत में बदले ज़रूर,
मगर जलालत में कुछ भी वो बता न सका ।
इंतिहा-ए-जुदाई-ओ-गम सब सहे उसने,
पर समंदर जो आंखों में था छिपा न सका ।
नाम ले ले कर मेरा बहुत कोसा किये था वो
कितना पागल था नफरत भी जता न सका ।
टूटकर चाहेगा वो ऐसा कभी कहा था उसने,
वो शख्स, जैसा भी था मैं भी भुला न सका ।
-------------------हर्ष महाजन
------------------अटूट रिश्ता (नज़्म)
वो दोस्ती का जज़्बा कभी दिखा न सका,
दुश्मन तो था मगर दुश्मनी निभा न सका ।
कुछ एक फसाने हकीकत में बदले ज़रूर,
मगर जलालत में कुछ भी वो बता न सका ।
इंतिहा-ए-जुदाई-ओ-गम सब सहे उसने,
पर समंदर जो आंखों में था छिपा न सका ।
नाम ले ले कर मेरा बहुत कोसा किये था वो
कितना पागल था नफरत भी जता न सका ।
टूटकर चाहेगा वो ऐसा कभी कहा था उसने,
वो शख्स, जैसा भी था मैं भी भुला न सका ।
-------------------हर्ष महाजन
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