यूँ न आँखों से बातें किया कीजिये,
इश्क़ का यूँ सबक न दिया कीजिये ।
हम तो नादान हैं प्यार में कुछ सनम,
तुम ख़बर कुछ तो दिल की लिया कीजिये ।
गम की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
टूटे दिल को न यूँ ही सिया कीजिये ।
हम तो डरते हैं बदनामी से शह्र में,
ज़िक्र तुम इश्क का न किया कीजिये |
गम की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
इल्तिज़ा अश्क तुम न पिया कीजिये ।
फ़ासला दरमियाँ अब हमारे कहाँ,
फ़ासलों में सनम न ज़िया कीजिये ।
जब भी आँखों से टपके नशा प्यार का,
हम नज़र से पिलायें पिया कीजिये ।
----------------हर्ष महाजन
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212
1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया
2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.
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