■■Post-4■■
◆◆रदीफ़ दोष◆◆
●●(c) रब्त का न होना●●
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प्रिय पाठकों:
ग़ज़ल कहन अगर आसाँ कहें तो ये हमारी भूल होगी । ये एक ऐसी विदा है जिसकी अथाह गहराई को समझने के लिए बहुत ही सहनशीलता और विनम्रता चाहिए । आजकल के लेखक की किसी कृति पर अगर किसी को कोई सुझाव भी दे दिया जाए तो इंसान विफऱ जाता है । वो व्यक्ति कहां इस विदा में तरक्की कर पायेगा ?
इस विदा में हर व्यक्ति अधूरा है यही समझो कि समझने के लिए समंदर अभी बाकि है मैं कम इल्मी इंसान आप जैसे धुरंदर कहने वालों को क्या सीखा पाऊंगा ? यही समझना कि मैंने अपने गुरु से जो कुछ भी सीखा बस वही तकसीम करने की कोशिश भर है । ग़ज़ल विदा को जब भी शुरू कीजियेगा अपने गुरु को हमेशा याद कीजियेगा आपकी विदा में चार चांद ज़रूर लगेंगे । बात कर रहे थे रदीफ़ के बारे में -----
कहे गए शे'र में जो रदीफ़ इस्तेमाल किया गया है अगर उसका कोई ओचित्य न हो या उसका रदीफ़ बेवजह ठूँस दिया गया हो या अर्थहीन जान पड़ता हो तो उस से शे'र में हल्कापन आ जाता है । इसे जानने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि रदीफ़ को हटा कर देखा जाए । अगर आपकी कही तहरीर में कोई भी फर्क नहीं पड़ता तो समझ लेना चाहिए कि वो भर्ती की रदीफ़ इस्तेमाल की गई है ।
ग़ज़ल की बाबत के मुताबिक एक उदाहरण लेते हैं:
आप जो हमसे दूर गए,
दिल से हम मज़बूर गए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर गए
आप देखेंगे सब कुछ सही सलामत यथावत लिया गया है । रदीफ़-क्वाफी भी एक दम दुरुस्त है । लेकिन पहली पंक्ति में रदीफ़ सही तरह से ली गयी है ।
मतला के सानी में और दूसरे शे'र के सानी में रदीफ़ का निर्वाह ठीक नही हुआ ।
यहां रब्त नहीं बना ।
सही क्या है ?
आप जो हमसे दूर हुए,
दिल से हम मज़बूर हुए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर हुए
एक और बात:
दोस्तो रदीफ़ के अपने ही बेमिसाल कुछ नियम हैं----
*रदीफ़ का काफ़िये के साथ पूर्ण रब्त या तालमेल हो यानि काफ़िया और रदीफ़ एक सार्थक जोड़ी बनाते हो और बेमेल न हों। जैसे–
फ़साना सुनाओ/ तराना सुनाओ के साथ ‘कोई गीत पुराना सुनाओ’ तो चलेगा, लेकिन ‘मुझे दिल चुराना सुनाओ‘ कैसे फिट होगा, क्योंकि चुराना सिखाओ हो सकता है, सुनाओ कैसे होगा?
*काफ़िये के लिंग, वचन ( singular/plural)और काल का रदीफ़ के साथ रब्त होना चाहिए। जैसे–
खता हो गई/ दुआ हो गई/ हवा हो गई के साथ ‘भला हो गई’ का कोई रब्त नहीं है, क्योंकि यहाँ ‘भला हो गया’ सही है।
रिसाला मिला/ उजाला मिला/ निवाला मिला के साथ ‘सबके होठों पर ताला मिला’ सही नहीं है क्योंकि ‘सबके होठों पर ताले मिले’ सही होगा।
कई बार देखा गया कि ऐसे ऐसे शेर बना दिये जाते है जहाँ ग़ज़ल में दो या तीन शेर तो सही रदीफ़ से मेल खाते हुए बने बाकि सभी शेरों में बिना रब्त के रदीफ़ इस्तेमाल कर दिया गया ।
***क्रमश:***
◆◆अगला पोस्ट-5◆◆रदीफ़ दोष (d)तक़ाबूले-रदीफ़◆◆
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◆◆रदीफ़ दोष◆◆
●●(c) रब्त का न होना●●
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प्रिय पाठकों:
ग़ज़ल कहन अगर आसाँ कहें तो ये हमारी भूल होगी । ये एक ऐसी विदा है जिसकी अथाह गहराई को समझने के लिए बहुत ही सहनशीलता और विनम्रता चाहिए । आजकल के लेखक की किसी कृति पर अगर किसी को कोई सुझाव भी दे दिया जाए तो इंसान विफऱ जाता है । वो व्यक्ति कहां इस विदा में तरक्की कर पायेगा ?
इस विदा में हर व्यक्ति अधूरा है यही समझो कि समझने के लिए समंदर अभी बाकि है मैं कम इल्मी इंसान आप जैसे धुरंदर कहने वालों को क्या सीखा पाऊंगा ? यही समझना कि मैंने अपने गुरु से जो कुछ भी सीखा बस वही तकसीम करने की कोशिश भर है । ग़ज़ल विदा को जब भी शुरू कीजियेगा अपने गुरु को हमेशा याद कीजियेगा आपकी विदा में चार चांद ज़रूर लगेंगे । बात कर रहे थे रदीफ़ के बारे में -----
कहे गए शे'र में जो रदीफ़ इस्तेमाल किया गया है अगर उसका कोई ओचित्य न हो या उसका रदीफ़ बेवजह ठूँस दिया गया हो या अर्थहीन जान पड़ता हो तो उस से शे'र में हल्कापन आ जाता है । इसे जानने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि रदीफ़ को हटा कर देखा जाए । अगर आपकी कही तहरीर में कोई भी फर्क नहीं पड़ता तो समझ लेना चाहिए कि वो भर्ती की रदीफ़ इस्तेमाल की गई है ।
ग़ज़ल की बाबत के मुताबिक एक उदाहरण लेते हैं:
आप जो हमसे दूर गए,
दिल से हम मज़बूर गए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर गए
आप देखेंगे सब कुछ सही सलामत यथावत लिया गया है । रदीफ़-क्वाफी भी एक दम दुरुस्त है । लेकिन पहली पंक्ति में रदीफ़ सही तरह से ली गयी है ।
मतला के सानी में और दूसरे शे'र के सानी में रदीफ़ का निर्वाह ठीक नही हुआ ।
यहां रब्त नहीं बना ।
सही क्या है ?
आप जो हमसे दूर हुए,
दिल से हम मज़बूर हुए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर हुए
एक और बात:
दोस्तो रदीफ़ के अपने ही बेमिसाल कुछ नियम हैं----
*रदीफ़ का काफ़िये के साथ पूर्ण रब्त या तालमेल हो यानि काफ़िया और रदीफ़ एक सार्थक जोड़ी बनाते हो और बेमेल न हों। जैसे–
फ़साना सुनाओ/ तराना सुनाओ के साथ ‘कोई गीत पुराना सुनाओ’ तो चलेगा, लेकिन ‘मुझे दिल चुराना सुनाओ‘ कैसे फिट होगा, क्योंकि चुराना सिखाओ हो सकता है, सुनाओ कैसे होगा?
*काफ़िये के लिंग, वचन ( singular/plural)और काल का रदीफ़ के साथ रब्त होना चाहिए। जैसे–
खता हो गई/ दुआ हो गई/ हवा हो गई के साथ ‘भला हो गई’ का कोई रब्त नहीं है, क्योंकि यहाँ ‘भला हो गया’ सही है।
रिसाला मिला/ उजाला मिला/ निवाला मिला के साथ ‘सबके होठों पर ताला मिला’ सही नहीं है क्योंकि ‘सबके होठों पर ताले मिले’ सही होगा।
कई बार देखा गया कि ऐसे ऐसे शेर बना दिये जाते है जहाँ ग़ज़ल में दो या तीन शेर तो सही रदीफ़ से मेल खाते हुए बने बाकि सभी शेरों में बिना रब्त के रदीफ़ इस्तेमाल कर दिया गया ।
***क्रमश:***
◆◆अगला पोस्ट-5◆◆रदीफ़ दोष (d)तक़ाबूले-रदीफ़◆◆
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बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
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