इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
Sunday, December 30, 2012
Sunday, December 16, 2012
क्यूँ तेरे किस्से किताबों की जगह लेने लगे
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क्यूँ तेरे किस्से किताबों की जगह लेने लगे ,
दिल का दर्द है शायद अहसासों में बहने लगे |
रोक ले इन ज़ख्मों को ये इल्तिजा है साहिल,
कहीं ये ज़ख्म नासूर बन दिल में न रहने लगे |
_______________हर्ष महाजन
क्यूँ तेरे किस्से किताबों की जगह लेने लगे ,
दिल का दर्द है शायद अहसासों में बहने लगे |
रोक ले इन ज़ख्मों को ये इल्तिजा है साहिल,
कहीं ये ज़ख्म नासूर बन दिल में न रहने लगे |
_______________हर्ष महाजन
Saturday, December 15, 2012
मेरी तहरीरें उनकी यादों से इस तरह सजी रहती हैं
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मेरी तहरीरें उनकी यादों से इस तरह सजी रहती हैं ,
कि उनके फेंके पत्थर भी फूल सी नरमी रखते हैं |
_________________हर्ष महाजन |
मेरी तहरीरें उनकी यादों से इस तरह सजी रहती हैं ,
कि उनके फेंके पत्थर भी फूल सी नरमी रखते हैं |
_________________हर्ष महाजन |
इन लरजते होटों से तस्दीक न कर चाहत की
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इन लरजते होटों से तस्दीक न कर चाहत की,
आजकल रकीबों की मंडी आसपास बसती है |
किस तरह बचा के रखोगे नसीब में दिलदार को,
अब तो हाथों की लकीरें भी किस्मत पर हंसती हैं |
______________हर्ष महाजन
इन लरजते होटों से तस्दीक न कर चाहत की,
आजकल रकीबों की मंडी आसपास बसती है |
किस तरह बचा के रखोगे नसीब में दिलदार को,
अब तो हाथों की लकीरें भी किस्मत पर हंसती हैं |
______________हर्ष महाजन
काश ! कुछ यूँ होता, तेरे ख्याल साथ होते
...
काश ! कुछ यूँ होता, तेरे ख्याल साथ होते,
फिर इस तरह से मेरे तुम दरमियाँ तो होते |
...जिन दिलों की रस्में मिलने से होतीं पूरी ,
कुछ कदम यूँ मिलके दिल बागबाँ तो होते |
____________हर्ष महाजन |
काश ! कुछ यूँ होता, तेरे ख्याल साथ होते,
फिर इस तरह से मेरे तुम दरमियाँ तो होते |
...जिन दिलों की रस्में मिलने से होतीं पूरी ,
कुछ कदम यूँ मिलके दिल बागबाँ तो होते |
____________हर्ष महाजन |
Thursday, December 6, 2012
उसने भी सलीके से सलाह दे डाली
...
उसने भी सलीके से सलाह दे डाली,
दिल ने भी कहा अब उठा ले प्याली |
अरसा होने को है रसपान नहीं किया,
अधर अपना तूफ़ान करने को खाली |
______________हर्ष महाजन
______________हर्ष महाजन
आज का एहसास -लेखन की जगह लेखक को सराहना
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आज का एहसास
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लेखन की जगह लेखक को सराहना,
सच में आया चापलूसी का ज़माना |
अधर में लेखनी अहसास चकनाचूर ,
बे-वफ़ा जब हुए पहुंचे फिर मैखाना |
आज का एहसास
____________
लेखन की जगह लेखक को सराहना,
सच में आया चापलूसी का ज़माना |
अधर में लेखनी अहसास चकनाचूर ,
बे-वफ़ा जब हुए पहुंचे फिर मैखाना |
लेखन की जगह लेखक को सराहना,
आस्तीन पकड़ने का ये दस्तूर पुराना |
खरबूजा छुरी पर या छुरी फिर उसी पर
कटा हो के घायल ये जानता ज़माना |
लेखन की जगह लेखक को सराहना,
सच में आया चापलूसी का ज़माना |
______हर्ष महाजन
आस्तीन पकड़ने का ये दस्तूर पुराना |
खरबूजा छुरी पर या छुरी फिर उसी पर
कटा हो के घायल ये जानता ज़माना |
लेखन की जगह लेखक को सराहना,
सच में आया चापलूसी का ज़माना |
______हर्ष महाजन
किस तरह जुदा करूँ तुझे मैं अपने तसव्वुर से
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किस तरह जुदा करूँ तुझे मैं अपने तसव्वुर से
खुदा कसम तू यादों में न होती तो खुदा होती |
_________________हर्ष महाजन
किस तरह जुदा करूँ तुझे मैं अपने तसव्वुर से
खुदा कसम तू यादों में न होती तो खुदा होती |
_________________हर्ष महाजन
जनाब अपने अहसास खंगालिए
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जनाब अपने अहसास खंगालिए
इन रिश्तो की बागडोर संभालिये |
छूट जाएगा सब कुछ इस जहां में ,
नहीं तो संभाल लेंगे यहाँ कंगालिये |
_____________हर्ष महाजन
जनाब अपने अहसास खंगालिए
इन रिश्तो की बागडोर संभालिये |
छूट जाएगा सब कुछ इस जहां में ,
नहीं तो संभाल लेंगे यहाँ कंगालिये |
_____________हर्ष महाजन
Sunday, December 2, 2012
उसने आज मेरी गिरेबान पे हाथ डाल दिया
...
उसने आज मेरी गिरेबान पे हाथ डाल दिया,
जो दिल में था बे-धडक उसने निकाल दिया |
बहुत ज़र्ब लगा दिल के किसी कोने में मुझे,
मुद्दत से ठंडा था क्षण में उसने उबाल दिया |
_______________हर्ष महाजन
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