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इन लरजते होटों से तस्दीक न कर चाहत की,
आजकल रकीबों की मंडी आसपास बसती है |
किस तरह बचा के रखोगे नसीब में दिलदार को,
अब तो हाथों की लकीरें भी किस्मत पर हंसती हैं |
______________हर्ष महाजन
इन लरजते होटों से तस्दीक न कर चाहत की,
आजकल रकीबों की मंडी आसपास बसती है |
किस तरह बचा के रखोगे नसीब में दिलदार को,
अब तो हाथों की लकीरें भी किस्मत पर हंसती हैं |
______________हर्ष महाजन
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