Sunday, October 12, 2014

मुझको अफ़सोस है सरहद पे कलम चलने लगी

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मुझको अफ़सोस है...सरहद पे कलम चलने लगी,
फिर शहीदों की चिताओं पे........आँखे भरने लगी |
हर तरफ अब तो.....सुलगता हुआ सहरा सा जहाँ,
कुछ तो दुश्मन कुछ अपनों का सफ़र करने लगी |

______________हर्ष महाजन

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