...
उनकी आँखों में मुझे, लुत्फ़-ए-शराब आता है,
वर्ना नफरत-ओ-शिकायत ही...जुबां पर होती |
उनकी जुल्फों के तले...होतीं नश-ए-मन नींदें,
वर्ना अब तक तो वो खंज़र के निशां पर होती |
वर्ना नफरत-ओ-शिकायत ही...जुबां पर होती |
उनकी जुल्फों के तले...होतीं नश-ए-मन नींदें,
वर्ना अब तक तो वो खंज़र के निशां पर होती |
______________हर्ष महाजन
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