-Maa
Maa tuzhko dekha hi nahi,
tu de apna avtaar kabhi,
ye duniya ajab nirali hai,
kerti na mujhe kyuin pyaar kabhi.
Na milta pita ka pyar mujhe,
na mile duniya ka dulaar mujhe,
sang le ja mujhko tu apne,
ya sapno mein de akaar kabhi.
Yuin pal-pal toote dil apna,
Kyuin dil ki keemat kutchh bhi nahi,
Kya bhookhey bilakhte mer jaayein,
Kyuin khule na kisi ka dwaar kabhi.
Bas zulmon ki barkha sehte hum,
apni koi patvaar nahi,
yuin ashk bahein akhian se sada,
Daaman mein jo le gamkhaar nahin.
harash
इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
Sunday, April 26, 2009
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