-MaiN jab bhi aata hooN dil ko saja ke rakhti ho
Badan Gulaab toh dil maikeda bana ke rakhti ho.
bahoot azeez hai mujhko tilism teri nazroN ka,
Sharbati aankhoN maiN jab jab saja ke rakhti ho.
Kadam fisal na jayeiN mere husn tire shabab se
saja ke kitne gulaab dil maiN chhupa ke rakhti ho.
Raah na bhool jaooN kabhi andheroN maiN yarab
shayad tum isi liye dil ka diya jalaa ke rakhti ho
Harash
इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
Sunday, April 26, 2009
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