Kab tak koi maikhane meiN daroo piya kare,
Is jindagi ko yuN hi koi kyuN jiya kare.
Shama agar de gair ke, gharoN meiN roshani,
To jindagi meiN kyuN koi, wafa kiya kare.
Itna bada hai dard ab, ki ban gaya dawa,
To jindagi meiN kyuN koi, dawa kiya kare.
Gam-o-khushi ke, lamhoN meiN hai, gam naseeb meiN,
To jindagi se, kyuN koi, gila kiya kare.
Napaak sa lage.a hai ab, har taraf mahoul,
Toh jindagi meiN ‘harash' kyuN aansoo piya kare.
Harash
इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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