Saturday, June 8, 2013

ज़िंदगी नासूर बनी हो मुझको ऐसा गम नहीं

.....

ज़िंदगी नासूर बनी हो मुझको ऐसा गम नहीं,
ज़िंदगी तेरी न हो अब मुझमें ऐसा दम नहीं |

तेरी खातिर छोड़ दिये अब दर्द के
वो फासले,
भूल गए अब ज़ख्मीं पल भूले मगर वो ज़ख्म नहीं |

आजकल शेरों में मेरे बेरुखी और रुसवाई,
जिस तरह ग़ज़लें उठीं तेरी, जहां थे हम नहीं |

हम चले महफ़िल से तेरी भूल कर सब अदावतें,
बह चुके अब अश्क इतने होती आखें नम नहीं |

रंग बिरंगी दुनिया में अब खुशियाँ सब बेरंग हुई,
इल्तजा ऐ खुदा उठा ले, कोई यहाँ हमदम नहीं |

____________________हर्ष महाजन

अदावतें=वैर

No comments:

Post a Comment