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चाहूँ तो निगाहों से पी लूं जिसपे हो नाज़ नशे-मन का,
पर है तकदीर में साहिल वो, करे जो राज़ मेरे तन का |
जहाँ फूल खिले है दिलभर का वो चमन सदा आबाद रहे,
ये खेल नहीं अल्फासों का मैं शायर 'हर्ष' हूँ तन-मन का |
________________________हर्ष महाजन
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