Tuesday, November 27, 2012

मेरी हसरत के रकीब आज ज़लील हो जाएँ

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मेरी हसरत के रकीब आज जलील हो जाए,
काश जो फूल हैं कलियों में तब्दील हो जाए |

मेरे जज्बातों को समझा है न समझेगा कभी,
इल्तजा है के रकीब दिल का जमील जो जाए |

मैंने भी इश्क में बर्बादी के किस्से हैं सुने  ,
काश !ये इश्क रकीबाँ का अश्लील हो जाए |

बे-वफ़ा कैसे कहूँ उसको वो आईना है मेरा,
शिकस्त-ए-दिल में भी कहीं मुझसे न ढील हो जाए |

जितनी मैखाने में है साकी पिला दे मुझको,
बस ये डर है के मुहब्बत न जलील हो जाए |


जमील=सुंदर (beautiful )
_______________हर्ष महाजन

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