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कितने ही जिंदा पत्तों ने शाखों को छोड़ा है अब तलक,
उनके जज्बातों को शायद पतझड़ ने समझा है यहाँ |
______________________हर्ष महाजन
कितने ही जिंदा पत्तों ने शाखों को छोड़ा है अब तलक,
उनके जज्बातों को शायद पतझड़ ने समझा है यहाँ |
______________________हर्ष महाजन
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