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नींद आँखों से गयी और गया दिल का करार,
तेरी जुल्फों को जो चाहूँ सुलझा दूं मैं इकबार |
हिज्र में दिल नहीं मोहताज़ किसी भी रुत का,
आओ कभी तसव्वुर में सहला दूं मैं इकबार |
_______________हर्ष महाजन |
नींद आँखों से गयी और गया दिल का करार,
तेरी जुल्फों को जो चाहूँ सुलझा दूं मैं इकबार |
हिज्र में दिल नहीं मोहताज़ किसी भी रुत का,
आओ कभी तसव्वुर में सहला दूं मैं इकबार |
_______________हर्ष महाजन |
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