Tuesday, March 12, 2013

मुझको उन किताबों से अब बाहर आना है

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मुझको उन किताबों से अब बाहर आना है ,
मेरी ग़ज़लों का जहां बे-इन्तहा नजराना है |
रच चुका हूँ मैं उन के इक-इक हर्फ़ में यूँ ,
सांप के मुख में ज्यूँ मणी का खजाना है |

__________________हर्ष महाजन

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