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किस तरह नजर अंदाज़ करूँ मैं इन इश्तहारों को
खुदा ने खुद दिए हैं रंग इन बे-शुमार त्योहारों को |
गर लिखा है नसीब में तो ढूंढ लेंगे क़दमों के निशाँ,
लौट कर आऊँगा मिलने अपने विसाल-ए-यारों को |
_____________________हर्ष महाजन
किस तरह नजर अंदाज़ करूँ मैं इन इश्तहारों को
खुदा ने खुद दिए हैं रंग इन बे-शुमार त्योहारों को |
गर लिखा है नसीब में तो ढूंढ लेंगे क़दमों के निशाँ,
लौट कर आऊँगा मिलने अपने विसाल-ए-यारों को |
_____________________हर्ष महाजन
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