सूखे पत्ते भी आजकल हवाओं में उड़ने लगे हैं
शायर जो इनको अपने शेरों में पढने लगे हैं |
ज़मीं पर सरकार अब इन्हें रहने नहीं देती
तो कुछ शेरों में और कुछ ढेरों में सड़ने लगे हैं |
सूखे पत्ते सी ज़िन्दगी जब भी कोई कहता है
शर्मसार हो ये सब अपने में ही सिकुड़ने लगे हैं |
ज़मीं को छोड़ कर हवाओं में उड़ने की चाहत
ले डूबी जो ये पत्ते आपस में बिछुड़ने लगे हैं |
कितना ढाते हैं कहर जब इन्हें ज़लाता है कोई
तो ज़हर बन ये पत्ते हवाओं में उतरने लगे हैं |
________________हर्ष महाजन |
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