पुरानी डायरी से :-
...
अब देखो तुम ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,
इन कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा ।
इन कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा ।
आँखों से बहते अश्क भी अब सोचते होंगे ,
ढूंढेंगे ऐसा घर तो फिर ये घर न मिलेगा ।
ढूंढूं कहाँ गमख्वार अब गैरों के शहर में
दुश्मन तो मिलेगा मगर रहबर न मिलेगा ।
अब हो गया इन आंखों में दर्दों का ज़खीरा,
टूटेगा जब अश्कों का समंदर न मिलेगा ।
यूँ अहल-ए-फन तो शहर में बहुत हैं यहाँ,
मगर तुझे ये 'हर्ष' सा दिलभर न मिलेगा |
____________________हर्ष महाजन ।
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ढूंढेंगे ऐसा घर तो फिर ये घर न मिलेगा ।
ढूंढूं कहाँ गमख्वार अब गैरों के शहर में
दुश्मन तो मिलेगा मगर रहबर न मिलेगा ।
अब हो गया इन आंखों में दर्दों का ज़खीरा,
टूटेगा जब अश्कों का समंदर न मिलेगा ।
यूँ अहल-ए-फन तो शहर में बहुत हैं यहाँ,
मगर तुझे ये 'हर्ष' सा दिलभर न मिलेगा |
____________________हर्ष महाजन ।
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