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अपनी मंजिल के लिए होश-ओ-खबर खो के चले,
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी.........वो मगर बो के चले |
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी.........वो मगर बो के चले |
मुब्तिला इश्क में वो....एहसास-ए-अदब भूल गए,
बंद आखों से अपनी....शाम-ओ-सहर खो के चले |
हमारा जौक-ए-सितम अब...फलक को छूने लगा,
बिखर तो हम भी गए पर......वो मगर रो के चले |
ये इश्क शोला हुआ......शिद्दत-ए-ख़ुलूस टूट गया,
ये साँसे चलती रहीं हाथ...........मगर धो के चले |
छुपे हैं घाव हज़ारों............अभी पर ज़िंदा हैं हम,
जहाँ को छोड़ कर हम........खूब मगर सो के चले |
हर्ष महाजन
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बंद आखों से अपनी....शाम-ओ-सहर खो के चले |
हमारा जौक-ए-सितम अब...फलक को छूने लगा,
बिखर तो हम भी गए पर......वो मगर रो के चले |
ये इश्क शोला हुआ......शिद्दत-ए-ख़ुलूस टूट गया,
ये साँसे चलती रहीं हाथ...........मगर धो के चले |
छुपे हैं घाव हज़ारों............अभी पर ज़िंदा हैं हम,
जहाँ को छोड़ कर हम........खूब मगर सो के चले |
हर्ष महाजन
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मुब्तिला = मसरूफ
बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद
एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव
जौक-ए-सितम = अत्याचार सहने का शौक़
शिद्दत-ए-ख़ुलूस = सच्ची दोस्ती, मैत्री
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