...
अक्सर आ जाता है गम-ए-गुफ्तगू में वो भी आलम ‘हर्ष’,
दायरा-ए-हुकूक दायरा-ए-होश से आगे निकल जाते है |
बदल जाती है कहीं रस्म-ए-वफ़ा......बदल जाते हैं रिश्ते कहीं ,
हो जाता है चाक-ए-गिरेबाँ....और धागे निकल जाते हैं |
दायरा-ए-हुकूक दायरा-ए-होश से आगे निकल जाते है |
बदल जाती है कहीं रस्म-ए-वफ़ा......बदल जाते हैं रिश्ते कहीं ,
हो जाता है चाक-ए-गिरेबाँ....और धागे निकल जाते हैं |
_____________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment