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अपनी मंजिल के लिए...होश-ओ-खबर खो के चले,
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी...........वो मगर बो के चले |
मुब्तिला इश्क में वो.....एहसास-ए-अदब भूल गए,
वो बंद आखों से अपनी शाम-ओ-सहर खो के चले |
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी...........वो मगर बो के चले |
मुब्तिला इश्क में वो.....एहसास-ए-अदब भूल गए,
वो बंद आखों से अपनी शाम-ओ-सहर खो के चले |
__________________हर्ष महाजन
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मुब्तिला = मसरूफ
बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद
एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव
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मुब्तिला = मसरूफ
बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद
एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव
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