Friday, June 12, 2015

अपनी मंजिल के लिए...होश-ओ-खबर खो के चले

...

अपनी मंजिल के लिए...होश-ओ-खबर खो के चले,
बा-वस्फे शौक़ दुश्मनी...........वो मगर बो के चले |
मुब्तिला इश्क में वो.....एहसास-ए-अदब भूल गए,
वो बंद आखों से अपनी शाम-ओ-सहर खो के चले |
__________________हर्ष महाजन


.
मुब्तिला = मसरूफ
बा-वस्फे शौक़ = इच्छा के बावजूद
एहसास-ए-अदब = शिष्टाचार का अनुभव

No comments:

Post a Comment