★★★★★★★नज़्म★★★★★★★★
अनकही बातें न जानें दिल में कितनी ले गया,
उँगलियाँ अपनों की यूँ....दांतों तले वो दे गया ।
कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला,
अपने हाथों, की लकीरों....,..को दगा वो दे गया ।
क्या चलेगी बेगुनाही.....की कलम अबकी यहॉं ?
किसने दी ऐसी सज़ा.....वो ज़िंदगी ही से गया ।
है दुआ, बातों से निकले.....राह कोई अब यहाँ,
वर्ना लिख देना जहाँ में, अपना, अपनों से गया ।
थी शिकायत उससे.......पाबंदी-ओ-शर्तें बेसबब,
बिन अदालत आपकी ख़ातिर वो जाँ तक दे गया ।
कितना तड़पा होगा वो उस आख़िरी पल में फ़क़त,
लिख मुकद्दर, ख़ुद वो अपना, रूह जहाँ से ले गया ।
ये खुदा की नैमतें हैं.........हम सभी ज़िंदा खड़े,
कौन जाने किसने जाना था.....किसे वो ले गया ।
पूजा कर-कर उम्र बीती दिल में क्यों नफ़रत अबस,
अब वो महफ़िल में नहीं पर दिल में नफरत ले गया ।
कुछ के दिल में थी अदावत* कुछ में रिश्ता नाम का,
इस तरह, वो संग, सबके रंजो गम......सब ले गया ।
रंजिशें किसकी थीं कितनी, ज़ह्र भी इतना था उफ़,
ऐ ख़ुदा तू ये बता अब.......ये गुनाह किस पे गया ।
इससे ज़्यादा ये तमाशा...........कौन देखेगा यहॉं,
तज़रुबा अपने हलातों.............का मगर वो दे गया ।
------हर्ष महाजन 'हर्ष'
*अदावत = शत्रुता
बह्र तर्ज़: आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे
2122 2122 2122 212
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