Thursday, July 11, 2013

आज मर कर भी मेरी रूह क्यूँ उसपे मरती है

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आज मर कर भी मेरी रूह क्यूँ उसपे मरती है |
रूह फिर दिल से निकल के क्यूँ उससे डरती है |

मेरी दुनिया थी शुरू उससे और उसपे ख़तम,
मैं तो दुनिया में नहीं फिर वो क्यूँ अखरती है |

इश्क के गुल जो थे गुलशन में थे गुजार लिए,
उसकी ज़िन्दगी है ये मेरी रूह क्यूँ मुकरती है |

न थी तमीज मुझे न था मुझको इश्क-ओ-ज्ञान,
मेरी मैयत में फिर वो रोज़ क्यूँ उतरती है |

प्यार की थी जो उमर हादसों में गुजर गयी,
बाकि ज़िन्द यूँ ही मैखानों में क्यूँ गुजरती है |

_______________हर्ष महाजन

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