Tuesday, July 2, 2013

दर्द उठता है रकीबों को भी रकाबत करते

...

दर्द उठता है रकीबों को भी रकाबत करते,
दिल में दुश्मन की तस्वीर के टुकड़े जलते |
ख्वाब खामोश से लगते हैं उन्हें क़त्ल हुए ,
ज़िन्दगी ऐसी छली दूजों को छलते-छलते |

रकाबत= दुशमनी

_____________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment