...
अपनी मर्ज़ी से कभी टूटा नहीं मैं आज तलक,
रही थी इश्क के बंद पिंजरे में उनकी थी झलक |
कभी वो रूठे कभी हमसे खफा लगने लगे ,
अहसास-ए-तन्हाई से मेरा सूख जाए हलक |
बेखबर खुद से रहूँ उनसे भी रहूँ गाफिल,
बहुत मैं चाहूँ झुकाना मगर झुकती न पलक |
सैलाब-ए-अश्क जो अखियों से यूँ ही बहता चले,
कहीं यूँ ज़िन्दगी का जाम जाए न छलक |
_____________________हर्ष महाजन
अपनी मर्ज़ी से कभी टूटा नहीं मैं आज तलक,
रही थी इश्क के बंद पिंजरे में उनकी थी झलक |
कभी वो रूठे कभी हमसे खफा लगने लगे ,
अहसास-ए-तन्हाई से मेरा सूख जाए हलक |
बेखबर खुद से रहूँ उनसे भी रहूँ गाफिल,
बहुत मैं चाहूँ झुकाना मगर झुकती न पलक |
सैलाब-ए-अश्क जो अखियों से यूँ ही बहता चले,
कहीं यूँ ज़िन्दगी का जाम जाए न छलक |
_____________________हर्ष महाजन
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