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सरहद पे बैठ बेचते वो राजनितिक रोटियां ,
आवाम कहाँ निभा सका ईद का हर पैगाम |
सदी से दिल मे प्यार है ओ ईद भरी है शाम,
डर इक उम्र से सालता कब उजड़े गुलफाम |
___________हर्ष महाजन
सरहद पे बैठ बेचते वो राजनितिक रोटियां ,
आवाम कहाँ निभा सका ईद का हर पैगाम |
सदी से दिल मे प्यार है ओ ईद भरी है शाम,
डर इक उम्र से सालता कब उजड़े गुलफाम |
___________हर्ष महाजन
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