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मेरे अश्क़ों को वो रात भर पोंछ्ता रहा,
कैसा दुश्मन था सुबह तक सोचता रहा ।
कब्र में भी अभी तक क्यूँ चैन नहीं मुझे,
बेक़सूर था वो, गफलत में कोसता रहा ।
पत्थर बेजान होते हैं कितना गलत था मैं,
जाने के बाद भी , दिवारों में खोजता रहा ।
उसने तो बहुत खायीं थी कसमें वफ़ा की,
मेरी आखिरी सांस तक, वो बोलता रहा ।
रोज़ आता है मैय्यत पे मेरी फूल चढ़ाने,
कितना पाक था बेवज़ह मैं खोलता रहा ।
___________हर्ष महाजन
मेरे अश्क़ों को वो रात भर पोंछ्ता रहा,
कैसा दुश्मन था सुबह तक सोचता रहा ।
कब्र में भी अभी तक क्यूँ चैन नहीं मुझे,
बेक़सूर था वो, गफलत में कोसता रहा ।
पत्थर बेजान होते हैं कितना गलत था मैं,
जाने के बाद भी , दिवारों में खोजता रहा ।
उसने तो बहुत खायीं थी कसमें वफ़ा की,
मेरी आखिरी सांस तक, वो बोलता रहा ।
रोज़ आता है मैय्यत पे मेरी फूल चढ़ाने,
कितना पाक था बेवज़ह मैं खोलता रहा ।
___________हर्ष महाजन
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