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मैं ज़ख्म तो हूँ यक़ीनन भर जाऊँगा,
मगर दाग बन ता-उम्र नज़र आऊँगा ।
जब तलक हूँ तेरे हाथों की लकीरों में,
दरिया हूँ मगर समंदर नज़र आऊँगा ।
___________हर्ष महाजन
मैं ज़ख्म तो हूँ यक़ीनन भर जाऊँगा,
मगर दाग बन ता-उम्र नज़र आऊँगा ।
जब तलक हूँ तेरे हाथों की लकीरों में,
दरिया हूँ मगर समंदर नज़र आऊँगा ।
___________हर्ष महाजन
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