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मेरा इक-इक लफ्ज़ बीते लम्हों का साया है,
बहुत अज़ीज़ है हर ज़ख्म जो उनसे पाया है ।
उतर जाते हैं कभी-कभी अश्क़ इन आखों से,
याद आता जब दिया जाने किसने बुझाया है ।
_____________हर्ष महाजन
मेरा इक-इक लफ्ज़ बीते लम्हों का साया है,
बहुत अज़ीज़ है हर ज़ख्म जो उनसे पाया है ।
उतर जाते हैं कभी-कभी अश्क़ इन आखों से,
याद आता जब दिया जाने किसने बुझाया है ।
_____________हर्ष महाजन
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