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कसूर था ज़मीर का, न मैं दर्द तक छुपा सका,
दगा दिया ज़मीर ने, न ज़मीर तक बचा सका ।
ये वलवालों की आग जो रूह तक निगल गयी,
हसरतों की आग न, बता सका न बुझा सका ।
मैं ढूँढता रहा था उसके ……खौफ की इबारतें,
वो इस कदर ज़ुदा हुआ फिर दोस्त न बना सका ।
ये कैसा था अज़ाब..... मेरी ज़िंदगी बदल गया,
न दोस्त ही मैं बन सका न दोस्ती निभा सका ।
कुछ लोग बे-वफ़ा का मुझको रंजो गम दे गए,
मज़बूर था मैं कब्र में तोहमत न झुठला सका ।
_____________हर्ष महाजन
कसूर था ज़मीर का, न मैं दर्द तक छुपा सका,
दगा दिया ज़मीर ने, न ज़मीर तक बचा सका ।
ये वलवालों की आग जो रूह तक निगल गयी,
हसरतों की आग न, बता सका न बुझा सका ।
मैं ढूँढता रहा था उसके ……खौफ की इबारतें,
वो इस कदर ज़ुदा हुआ फिर दोस्त न बना सका ।
ये कैसा था अज़ाब..... मेरी ज़िंदगी बदल गया,
न दोस्त ही मैं बन सका न दोस्ती निभा सका ।
कुछ लोग बे-वफ़ा का मुझको रंजो गम दे गए,
मज़बूर था मैं कब्र में तोहमत न झुठला सका ।
_____________हर्ष महाजन
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