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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती .....धुन मैं बनाता रहा ।
उसकी तहरीरें दिल को.....चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा उसका रुलाता रहा ।
हम मुहब्बत में शायद.......नाकाम रहे,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।
मैंने सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।
रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।
उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।
--------------हर्ष महाजन
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