...
देखकर शख्स....... हमें मुस्कराते रहे,
दूर तक हमको....... वो याद आते रहे ।
हम भी थे अजनबी, अजनबी वो भी थे,
तनहा-तनहा सफ़र......हम निभाते रहे।
दूर तक थी दिलों में.. खलिश सी बहुत,
जब सफ़र टूटा.........आँखें मिलाते रहे ।
क्यूँ ऐसे अनजान ज़ख्मों में....दर्द बहुत,
सोचकर उम्र भर.........सर खुजाते रहे ।
तरंगे-दिल से तो हम उनके...परेशान थे,
फिर वो अक्स भी उनके.....सताते रहे ।
हम मिलेंगे शायद छोड़ा जिस मोड़ पर,
सहरो शाम वहां..........दीप जलाते रहे ।
हमसफ़र हमको अपने......अज़ीज़ बहुत,
पर वो शख्स दिल में घर को बनाते रहे ।
हमने जब जब ज़हन से, था पटका उन्हें,
रख वो ख्वाबों में..... जुल्फें सजाते रहे ।
जान 'पर' इश्क अनजान रहे हमसफ़र,
सोच ये अब 'हर्ष'.... अश्क बहाते रहे ।
पर=गैर
---------------हर्ष महाजन
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