इक मुक्तक में थोड़ी तब्दीली ...उम्मीद है मेरे ज़हीन श्रोता इसे ज़रूर पसंद करेंगे.....
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वो शख्स दिल से उतर गया ये भी सच है गैर निकल गया,
पलकों से उतरा अश्क बन पर सकूं था ज़हर निकल गया |
था खुदा का उसमें ज़ज्बा इक हर शख्स उसको अज़ीज़ था,
पर था अना में वो इस कदर कि खुदा का मेहर निकल गया |
_______________हर्ष महाजन
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वो शख्स दिल से उतर गया ये भी सच है गैर निकल गया,
पलकों से उतरा अश्क बन पर सकूं था ज़हर निकल गया |
था खुदा का उसमें ज़ज्बा इक हर शख्स उसको अज़ीज़ था,
पर था अना में वो इस कदर कि खुदा का मेहर निकल गया |
_______________हर्ष महाजन
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