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तेरा दिल रकीबों का शहर है, मैं हैरान हूँ अब क्या करूँ,
इन काफिरों के शहर में अब, परेशान हूँ अब क्या करूं ।
मेरा सब्र मुझ से बिछुड़ गया, तनहायी में है पड़ा हुआ,
अब कुछ ही पल का लगे मुझे, मेहमान हूँ अब क्या करूँ ।
-----------------हर्ष महाजन
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