------माँ फ़क़त माँ------
…
जब सवालों में नज़र आने लगी,
माँ खुद मुझ से बतियाने लगी ।
अनगिनित सिलवटें लिए चेहरे पे,
वक़्त पे खा लिया कर बताने लगी।
किस तरह झांका दिल के दरीचों में,
हर आने वाली तकलीफ समझाने लगी ।
कब तक चलेंगे रिश्ते दूर दूर रह कर,
फिर ले ले सबका नाम दोहराने लगी ।
नहीं होता इक सा वक़्त बताया उसने,
इक पीड़ा थी चेहरे पे जिसे छुपाने लगी ।
कितना दर्द होता है फ़क़त एक दिन में,
सदियाँ लग जायेंगी कह कराहने लगी ।
___________हर्ष महाजन
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