Friday, May 15, 2015

बेचकर क्या ज़मीर....इंसा रह पायेगा



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बेचकर क्या ज़मीर....इंसा रह पायेगा,
दौलतों का वज़न क्या वो सह पायेगा |
जिस अना पे टिकी थी कली शाख पर,
गर टूटी क्या शिकवों को सह पायेगा |

_______हर्ष महाजन

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