...
लम्हा-लम्हा मुझे ख़्वाबों में सताता है कोई,
फिर मुझे रातों की नींदों से जगाता है कोई |
बेखबर है वो मुसाफिर शायद अश्कों से मेरे,
बस मुहब्बत की शमा रोज़ जलाता है कोई |
फिर मुझे रातों की नींदों से जगाता है कोई |
बेखबर है वो मुसाफिर शायद अश्कों से मेरे,
बस मुहब्बत की शमा रोज़ जलाता है कोई |
__________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment