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इन्सान की फितरत क्या कहिये, मुर्दों में खज़ाना ढूँढ लिया,
कहाँ बेचें जिस्म के अंगों को, उसका भी ठिकाना ढूँढ लिया |
छोड़ें न मरगट में वो कफ़न, करते न हर तन को वो दफ़न ,
इंसान की कीमत कुछ भी नहीं, अपनों ने निशाना ढूँढ लिया |
नौकर हो चाहे व्यापारी, चाहे हो बाबू सरकारी,
दौलत के भूखे-नंगों ने, उनका भी निशाना ढूँढ लिया |
किश्तों में जब लोग बिकने लगे, अपनों के संग वो दिखने लगे,
अहसास मरे यूँ अपनों के, उनको फुसलाना ढूँढ लिया |
जब पल-पल यूँ ही मरने लगे , ऐसे मंज़र जब चलनें लगे,
तो उम्र घटी शैतानों की , जब 'हर्ष' दीवाना ढूँढ लिया |
हर्ष महाजन
इन्सान की फितरत क्या कहिये, मुर्दों में खज़ाना ढूँढ लिया,
कहाँ बेचें जिस्म के अंगों को, उसका भी ठिकाना ढूँढ लिया |
छोड़ें न मरगट में वो कफ़न, करते न हर तन को वो दफ़न ,
इंसान की कीमत कुछ भी नहीं, अपनों ने निशाना ढूँढ लिया |
नौकर हो चाहे व्यापारी, चाहे हो बाबू सरकारी,
दौलत के भूखे-नंगों ने, उनका भी निशाना ढूँढ लिया |
किश्तों में जब लोग बिकने लगे, अपनों के संग वो दिखने लगे,
अहसास मरे यूँ अपनों के, उनको फुसलाना ढूँढ लिया |
जब पल-पल यूँ ही मरने लगे , ऐसे मंज़र जब चलनें लगे,
तो उम्र घटी शैतानों की , जब 'हर्ष' दीवाना ढूँढ लिया |
हर्ष महाजन
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