...
यूँ न उलझो मेरी जुल्फ से ओ सनम, पेच-ओ-ख़म फिर न इनके सुलझ पायेंगे,
गर न समझोगे फिर धडकनों की जुबां, दिल से दिल फिर कहाँ ये उलझ पायेंगे |
गर न समझोगे फिर धडकनों की जुबां, दिल से दिल फिर कहाँ ये उलझ पायेंगे |
.
यूँ ही क़दमों पे धड़कन बिछाओ न तुम, कुछ शिकन माथे पर हैं हटाओ न तुम ,
अब बना हिन्दू, मुस्लिम ये सूरज जहां, वो कहाँ इन गुलों को समझ पायेंगे |
_______________________हर्ष महाजन
अब बना हिन्दू, मुस्लिम ये सूरज जहां, वो कहाँ इन गुलों को समझ पायेंगे |
_______________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment