बदलते दौर में अब मौत पर मातम भी नहीं है
तू ढूंढें आसरा उनसे जहाँ इंसानियत ही नहीं है
देखो धूप का तो शहर मैं अब निशाँ कहाँ है 'हर्ष'
किसी भी घर में देखो आजकल आँगन ही नहीं है
_____________हर्ष महाजन
तू ढूंढें आसरा उनसे जहाँ इंसानियत ही नहीं है
देखो धूप का तो शहर मैं अब निशाँ कहाँ है 'हर्ष'
किसी भी घर में देखो आजकल आँगन ही नहीं है
_____________हर्ष महाजन
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